वो आकर बचा गए...


हादसे और राहत के बीच बस चमत्कार का फर्क है. यकीन का असर होता है. बस एहसास करने की बात है. जो हर वक्त नहीं होता, बेवक्त होता है. यकीन फकीर या अजनबी पर करना बेहद मुश्किल है. आज का दौर अविश्वसनीयता का है. जब मोहलत मिलती है तो आदमी अपने अंदर के अविश्वास को और मजबूत करने की कोशिश में रहता है. सारी जुगत अपनी बुद्धिमत्ता की स्थिति को सही ठहराने की. वो जताने के लिए नहीं बल्कि खुद को जानकार समझने की वजह से होती है. ये कुछ भी है पर यथास्थिति है.


किस्से हमेशा के लिए हो जाते हैं. जब हैरान करने वाली घटना घटित होती है. उस दिन की बात है. शनिवार था. घर पर ठहरकर दफ्तर के काम से थोड़ी फुर्सत का दिन. अचानक दरवाजे पर गया, तो दो लोगों ने दस्तक दी. दो अजनबी, भगवा पहने. एक उम्र में बड़ा, एक छोटा. पहली झलक में ही लगा जैसे कोई संदेश आया है. प्रकृति कुछ कह देती है, इशारा देती है आपको सुनने का समय निकालना होता है. अपने अंदर की आवाजों को दरकिनार करके. समझने की कोशिश करनी चाहिए. उनकी नजरों ने कोई बंधन बांध दिया. कुछ पल ही में कुछ वशीकरण जैसा एहसास. जो आपको सरेंडर कर रहा था.


उधर से कुछ कहा गया. मन की स्थिति से जुड़े भाव साबित करते तर्क और कथन आने लगे. ऐसा लगा जैसे आपको परख लिया गया है. बेपर्दा होती स्थिति में सहज ही झुकाव हुआ. बैठने का निमंत्रण दे दिया. कुछ कर्मकाण्ड सा कुछ किया जाने लगा. आने वाले हादसे का जिक्र किया गया. मेरे परिवार और मुझपर संकट का और कुछ किए कराए जाने की सूचना दी गई. आपका मन जो परिवार के हित से बढ़कर कुछ ना मानें. सहज ही उस हित पर किसी तरह के संकट को नहीं स्वीकार करेगा.

दोनों साधु के भेष में थे. एक गेरुआ, एक सफेद. मैंने पूछा कहां से आना हुआ. जवाब मिला- बालाजी से आए हैं और आप कहां के हैं?” उन्हें अपने पीलीभीत से होने के बारे में बताया. बोले शाहजहांपुर जानते हो. हम मूलरूप से वहां से हैं. कांठ से... अपने ननिहाल के बारे में निगोही और नहर के बारे में बताया. भौगोलिक प्रारब्ध की वजह से भरोसा और कायम हुआ. नाना के ज्योतिष विद्या में निपुण होने के बारे में बताया. जो अब इस लोक में नहीं हैं. लगने लगा कोई रिश्ता कायम हो गया. बोली की भी पहचान होने लगी. इतनी दूर एकांत शहर में ननिहाल से आने का रिश्ता सहजता पैदा कर चुका था.


घर के अंदर डमरू वाले की पैठ की जानकारी. रिश्ते में लालच ना होने और ईर्ष्या भाव की अनुपस्थिति को स्वीकृत करती उनकी बातें मुग्ध कर चुकी थीं. कुछ दिन पहले ही मैं नीलकंठ और हरिद्वार होकर आया था. वहां से डमरू और नीलकंठ मेरे साथ आए थे.

अचानक से आया सवाल- क्या आप जानना चाहते हैं, वो करने वाला कौन है?” कुछ दैवीय जवाब मेरे मन से सहज मुंह से निकल गया- “नहीं”.


क्या आप चाहते हैं कि वो किया कराया वापस करने वाले को ही भेज दिया जाए?” मेरा जवाब अभी भी वही था- “नहीं... किसी का अहित नहीं करना”. बड़े साधु ने छोटे से कहा- कितने साफदिल इंसान हैं.” पत्नी की सहमति हमें बिना मतभेद के एक जैसा और एकमत होने का प्रमाण दे रही थीं. भरोसा बढ़ते ही घर के अंदर चार नए खरीदे गए आसन बिछा दिए गए. दो पर आगंतुक और दो पर हम दंपति.


अहित ना करने के बावजूद एक क्रिया के बारे में कार्य आरंभ किया गया. घर के अंदर से कालीमिर्च मंगाई गई. पीने के लिए पानी मांगा. एक लोटे में लाकर दिया. एक और गिलास में पानी मांगा. लाया गया. दो काली मिर्च उठाकर हाथ में सौंपी गई. कोई मंत्र पढ़ा गया. गिलास में डलवाया और अपनी हथेली से ढंकने को कहा. मंत्रमुग्ध इंसान की तरह आदेशों का पालन होता गया. कुछ पाठ दोहरवाया, हथेली हटाई. गिलास के पानी में लाल खून जैसा दिखा. हैरान आंखें कुछ समझ पातीं तो निष्कर्ष दिया गया. किए कराए का संकेत मिला. पहले ही बता चुके थे, कि आपके साथ हादसा होने वाला था. पुण्यकर्मों से बचाव होगा.


दो दिन पहले ही दफ्तर में एक साथी जो मेरे साथ ही निकले थे. वो एक्सीडेंट में घायल हुए थे. लगा वो विपदा अपने ऊपर रही होगी. पिछले हफ्ते दिखे सपनों की बातें भी सहज होती दिखीं. जैसे कोई उनका मतलब हो. सपने में ऊटपटांग घटनाएं देखी थीं. जैसे मेरे हाथों में सौंपी गई दो लाशों के अवशेष, ऊंट की सवारी और राजसी जनाजा. घर पहुंचते हुए मफलर में सूखा हुआ खून, प्लास्टिक के पैकेट में अवशेषों की दुर्गति. अनिष्ट जैसा कुछ. संकेत लगा कि कुछ मतलब होगा.


आगे सूत का धागा मांगा गया. दिया, अपनी नाप से 3 हाथ धागा निकला. अगले ने उसे लपेटकर छल्ले की शक्ल दी. प्लेट में हल्दी और जूते मंगाए. एक जूता देखकर वापस कर दिया. फिर फीते वाले जूते मांगे. एक जोड़ी नए जूते जो तीर्थ करके आए थे. वो मेरे हाथों से लेकर रखे. जूतों के साथ कुछ मंत्र किया. दूसरी तरफ प्लेट में सूत का छल्ला, थोड़े चावलहल्दी और काली मिर्च रखकर. उसपर मेरे हाथों से उड़ेला गया लाल पानी. उसके ऊपर साधु ने जैसे ही अपना कमंडल रखा. अचानक से धुंएं के साथ हुआ हल्का विस्फोट. जैसे बिजली कड़की हो. आंखें दंग थीं ये सब देखकर. लगा कोई जादू या ट्रिक की जा रही. उसके बाद निकाला गया सूत का धागा नापा गया, तो निकला 2 हाथ. 3 हाथ से 1 हाथ कम.


सारी चीजें जादू लग रही थीं. आंख का भ्रम, पर इनका मतलब समझ में नहीं आया. बताया गया. संकट टल गया है. बची हुई सामग्री मंत्रों के साथ किसी श्मसान में घड़े में बंद कर छोड़ने का सुझाव दिया गया. कहा गया एक मंत्र पढ़कर ये करना और फिर पीछे मुड़कर मत देखना. साथ में दिया गया एक मुश्किल मंत्र. पूरी क्रिया तांत्रिक लग रही थी. जिसकी कोई व्याख्या नहीं थी. कोई वैज्ञानिक स्पष्टीकरण नहीं. मन उनके वश में होते-होते भी विरोध कर गया. सारी दक्षिणा के साथ उनके विरोध किया गया. ये हम दंपति की सीमाओं से बाहर है. हम कुछ भी ऐसा नहीं कर सकते. आस्था ईश्वर में है. तो ये हमारे वश के बाहर. ये डर से नहीं, ये सीमाओं की वजह से है. उस क्रिया में मेरी सोने की अंगूठी हाथ में लेकर मंत्र पढ़कर वापस कर दी गई. हमारे बंधन की निशानी थी, तो वापस कर दी गई. किसी दिवंगत की निशानी को ले जाने का मन उनका भी नहीं हुआ. सोने की अंगूठी के प्रति मोह को परखा गया था तो वो लौटा दिया गया.

 

मन ना मानने पर आश्चर्य करते साधु, सारी सामग्री धन सहित बची हुई क्रिया संपन्न करने के भरोसे के साथ घर से चले गए. बार-बार पूछा नाराजगी से तो नहीं कर रहे. मन से कर रहे हो ना. मन विचित्र गतिविधि से निकल नहीं पाया. पर जवाब सहमति से ही दिया गया. बिना किसी का अहित किए, जो भी हुआ उसे होने जाने दिया. उन्होंने कहा- मान लो इतने का खा या पहन लिया. या राम मंदिर को दान कर दिया.


अगला दिन सारी क्रियाविधि को परखने और निर्णय की बहस और चिंतन में ही बीत गया. नहीं समझ आया कोई भी काम. सारा तंत्र मंत्र तगड़े झांसे में फंसने जैसा लग रहा था. साधु कबके जा चुके थे. मन में ठगी का भ्रम पैदा हो चुका था. दक्षिणा देते समय मोह नहीं था. पर पूरे 36 घंटे तक मन में कसक रही. महीने की पूरी बचत का पैसा उन्हें दे दिया था. बड़े भरोसे के साथ. जैसे संकट टलने की कीमत. ये सारी घटना शनिवार की थी. रविवार उमस में बीता. साल का आखिरी दिन था. 31 दिसंबर 2023.

 

2024 के पहले महीने में ही राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा होनी है. राम मंदिर के नाम पर दान की बात में थोड़ा भरोसा लगा. पर अभी भी मन के सवाल बाकी थे. ये सब क्यों हुआ? मन की शांति भंग थी. ऐसी कौन सी बला थी, जो मूल्य लेकर टाली जाएमन में कुरेद रहा था ये सवाल. रात बीती. अगले दिन सुबह दफ्तर पहुंचा. साल का पहला दिन 1 जनवरी 2024. चारों तरफ से शुभकामनाओं का दिन. सेलिब्रेशन का दिन. छुट्टी ले सकने का विकल्प था. पर अपनी जिद में दफ्तर गया. कर्मठता की जिद में. कुछ जता देने की जिद में. अपने जरूरी पद की जिद में. कुछ साबित करने के लिए. जैसे कोई प्रभावित हो जाएगा.


शाम बीती. वापस लौटने का वक्त हुआ. पूरी तरह से सर्दी से बचने के लिए खुद को कपड़ों से पैक किया. दस्ताने, मफलर, जैकेट, बैग से पैक्ड. बाइक पर सवार होकर घर लौटने लगा. आधे रास्ते पहुंचते ही सड़क पर अचानक बाइक फिसल गई. आधी सड़क नए सिरे से बन चुकी थी. एक परत ऊंची, आधी नीची.



एक दिन पहले ही बाइक की सर्विस करवाई थी. कोई कमी नहीं थी तकनीकी. पर अब इस सबका मतलब नहीं था. बाइक फिसली, घिसटती गई. इनर, दस्ताने, पैंट घिसकर फट गई. घुटने से रिसने लगा खून. हैलमेट में स्क्रैच, घिसते हुए कुछ मीटर तक रगड़ते हुए आगे बढ़ते हुए भी बाइक स्टार्ट रही. हैरानी, संभलने का मौका न मिला. पर बिल्कुल भी डर का एहसास नहीं हुआ. चोट लग चुकी थी. अच्छे खासे चलते रोड पर जान बचने का सवाल ही नहीं था. पर अपने आप उठकर खड़ा हुआ. बांई ओर की तरफ गिरा था. दांए पैर का जूता निकल चुका था. दस्ताने घिस गए थे. उठकर पास में घुटने को सहलाते हुए फुटपाथ पर जाकर बैठ गया. कहीं से तीन लोग आए हालत पूछी. बाइक उठाकर पास में खड़ी की. लोगों ने बताया कि पास में मेडिकल है, मरहमपट्टी हो सकती है. कहां जाना है. पूछताछ में बता दिया. बताया कि हैलमेट ना होता तो काम हो जाते.


गौर करें... अनहोनी टल चुकी थी. साधु की बात का एहसास होने लगा.


हल्का दर्द कम हुआ तो उठकर धीमे-धीमे बाइक चलाकर वापस घर आ गया. पत्नी घर से बाहर पड़ोस में ही कहीं गई थी. वापस आने में 10 मिनट लगा होगा. दफ्तर के साथियों को सूचना दे दी. 3 दिन पहले ही ऐसी ही घटना एक साथी के साथ हो चुकी थी. उनके भी बाएं पैर में काफी चोट लगी थी.


पत्नी ने दवाई लाकर मरहमपट्टी की. दवाई खाकर जब दर्द से राहत मिली. तब से साधु की बात और उस तंत्र मंत्र की हर एक क्रिया का एहसास होने लगा. सारे मायने समझ आने लगे. जिस दांये पैर के जूते को उन्होंने छूकर वापस रखवा दिया. उस पैर में खरोंच तक नहीं आई. शरीर का दांया भाग सलामत रहा. बांए पैर के घुटने में ही हल्की चोट थी. गनीमत रही कोई टूटफूट नहीं हुई. जिस स्पीड से गिरा था वैसा कोई हादसा नहीं हुआ.


साधु ने जिन जिन चीजों का इस्तेमाल किया. सब सच लगने लगीं. काली मिर्च पानी में डालने पर खून दिखा था. आज ओस के पानी में काले कोलतार की सड़क पर मेरा खून बहा. एक जोड़ी जूते दान में ले गए थे. नए जूते थे तो मन में मोह रह गया था. एहसास हो गया, अगर आज पैर ही ना बचते तो जूते किसमें पहनताजिस अंगूठी का मोह था, बंधन था. जब हाथ ही नहीं रहते तो अंगूठी किसमें पहनताजिस धन के अर्जन का अहंकार था. कमाई जोड़ने का जो गर्व था. जीवन ही नहीं रहता तो उस बचाए गए धन का क्या होता? जिस हल्दी की क्रिया उन्होंने की थी. वही हल्दी आज औषधि के रूप में मुझे दी जा रही है. ताकि जख्म जल्दी भरे और दर्द से राहत मिले. वो चावल के दाने का पात्र ले गए थे. आज मेरे साथ बाइक पर टिफिन भी था. ऑफिस 4 रोटी ले गया था. दो बची थीं. एक दाल का डब्बा था. जो खाली था. बाकी जिसमें चावल ले गया था वो टूट चुका था. चावल का कांच का डब्बा चूर-चूर हो गया. बाकी के दोनों डब्बे सलामत बच गए. 


उस दिन 3 हाथ का सूत का धागा 2 हाथ का रह गया था. सूत यानि कपड़ा. धागा कम होना मतलब कपड़ा घटना. आज मेरे घुटने पर कपड़ा फट चुका था. अगर कुछ अनहोनी होती तो सारी आमदनी बर्बाद हो जाती. अनगिनत खर्चा होता. शारीरिक कष्ट अलग. इन सबसे बच चुका हूं. अंगूठी का भी प्रारब्ध शांत हो चुका था. उसपर पड़ी दृष्टि भी उतर चुकी हैं. सारे गहनों से मोह अब त्याग कर रहा हूं. राम मंदिर के नाम से दान का जो संतोष खरीदा था. वो भी सही साबित हो चुका है. राम के सेवक हनुमान जी यानी बालाजी ने घर आकर मेरे ऊपर का कष्ट हर लिया. आगाह भी किया. मन के सारे सवाल सुलझ चुके हैं. पर अब मैं उन्हें ढूंढ नहीं सकता. वो कहां गए पता नहीं.

जब ये घटना को लिख रहा हूं. मेरे पड़ोस के मंदिर में कीर्तन हो रहा है- बालाजी तेरे मंदिर में... कोई सुनाए गीता रामायण. मैं सुनाऊं तेरे गान, बालाजी तेरे मंदिर में...



2 January 2024

Sector 12, Noida