आपको क्या चाहिए, एक स्वच्छ देश के लिए एक स्वच्छ चेतना। बस इतना ही पहली बार में समझ आता है। अगर हम इसी देश के कर्तव्यनिष्ठ नागरिक हैं तो इतना सा एहसास जरूर रखिए कि हमारी नाड़ियां तभी शुद्ध होंगी, अगर हमारे देश की जल-धाराएं पवित्र हों। पर ऐसा अभी नहीं है।
स्वच्छता-निर्मलता भी कोई काम है क्या? या ये एक बोझ है, जिम्मेदारी है? ये नही है तभी अस्वच्छता की आलोचना एकतरफा होती रहती है। होती रही है, तो पहले वो ही कर लो।
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कर ली!
अब जरा दूसरी तरफ सोच भी लो। पहले दौर में नेतृत्व का काम होता है- एक संदेश देना। दौड़-भाग के बीच कितना इसपर ध्यान दिया गया, या कितना इसे लापरवाही में छोड़ दिया गया। ये सब नतीजों पर निर्भर करता है। आप नतीजे आंकड़ें देख रहे होंगे। खंगालिए। करते रहिए।
जब आप साधन सम्पन्न हैं तो नतीजा बेहद जरूरी है। हमें नतीजे भी देखना है। पर जब आमतौर पर नहीं दिखता तो इसी तरफ एक बार इस विचार की भी आलोचना कर दी जाती है। सवालों के बीच की जगह में आलोचना की जगह भी आ जाती है। उसे मिलनी चाहिए।
खैर, निर्मलता के स्वप्न के बीच पाप को धोकर धाराओं को सौंपने की झलक अभी भी मिल रही है। ऐसे में कैसे धाराओं की निर्मलता का सपना पूरा होगा। वादों से सच्चाई काफी दूर है। वो विद्रोह करती दिखती है। इसके बाद भी क्या केवल सपने में ही 'अमृत' का स्वाद लेना है। क्या ये स्वाद केवल बातों में ही रहना-मिलना है या इसे सच में फिर साबित भी करना है?
निर्मलता अभी भी ध्यान मे है, फिर इतना अवरोध क्यों करना है? इसे आने दो। इसे कर्तव्य में शामिल हो जाने दो। फिर कर्तव्य को अपने हाथों से हो जाने दो।
कोई प्रेरणा दे रहा है आप खूब ले लो, कितनी ऊंची चाहिए। क्या नेतृत्व का ये संदेश भी आपको झकझोर नहीं सकता- आपकी अपनी नाड़ियों की निर्मलता के लिए। अगर निर्मलता का विचार भी आपको जोड़ नहीं सकता, तो खुद को नकोचने का वक्त है।
नमामि गंगे
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