स्वामी नारायण


नदारद हो जाएगा एक दिन अहं
इतना सा समझा पाए कोई
कोई रंग-रूप है ही कहां, सब अस्थिर
जिजीविषा को थमा दे, पर कभी थकाए नहीं
कितना भव्य प्रेरणा देता है उसका अंत-अनंत
रम्य है सुरम्य, सुरम्यतम
ये कितना दैवीय, चले जाना प्रेरक का
स्वामी के लिए- स्वामी नारायण के लिए

कोई छवि आपको भीतर तक झकझोर दे तो रोकना नहीं चाहिए। प्रतिरोध नहीं करना चाहिए। कोई Deterrent नहीं। अगर ये इतना गर्म हो, कि पिघला दे, तो पिघल जाओ, मत रोको। ये कुछ ऐसा ही था। 'अक्षरधाम' को यमुना किनारे अवतरित करने वाला दिव्य पुरुष अब शरीर में नहीं रहा। उसका भव्यतर होना एक ऐसी घटना हुई, जिसमें देश का प्रधानमंत्री शामिल हुआ, सबसे बड़ी जिम्मेदारी लालकिले से राष्ट्र को गरजती हुई आवाज में संबोधित करने के तुरंत बाद उसका फूटफूटकर रोना, कोई देखे तो आश्चर्य कर बैठे। ये नाटक नहीं है। ये छवि नहीं है। यहां कोई प्रतिरोध नहीं है, साहब!


स्वामी नारायण संप्रदाय को आगे बढ़ाने वाले प्रमुख महाराज का निधन, कैसे देश के सबसे ताकतवर पदधारी इंसान को रुला सकता है। मैं आश्चर्य में नहीं, मैं उसे देख नहीं सकता। ये क्या है, दुनिया का क्या स्वरूप है। ये मेरी संस्कृति का सर्वोत्तम उदाहरण है, जो मेरी आंखों के सामने है। अरे भाई, तुम मेरे भाई।

प्रभुत्व कितना होता है? किसका होता है? शब्दों में कुछ तो झलकता है? यहां प्रेम का इतना अच्छा प्रसंग है, मुझे इसे देखते रहना है। मुझे अभी कोई और विचार नहीं चाहिए। हट जाओ दूर।



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