जुगनी


प्यार करना कोई सिख ही सिखा सकता है। पता नहीं क्यों ज्यादा पता नहीं उनके बारे में, लेकिन बिना सौदेबाजी के प्यार, जिसमें मासूमियत दर्जा दर दर्जा ऊंची उठे और सब दिल में भरा दिल से बांटता फिरे, ऐसा फकीर नुमा एहसास कोई पंजाबी ही करा सकता है। ये छवि मुझे नज़र आती है। मुझे इसमें सुकून मिला।

गुरदास मान का सच में जवाब नहीं। आंखें चमक उठती हैं उनकी जब सुरूर छा जाता है। दिलचस्प जोड़ी है दिलजीत संग। इतनी उनमें इंसानियत दिखती है कि बस भीतर के सारे छेद भर देती है। कुछ खालीपन नहीं बचता। भले सब समझ ना आए, जुबान का फर्क हो जाए, पर दिल में उतर जाए। क्या ठिकाना है कहां है? चला जा चला चल। झूम, बस झूम.. की बनु दुनिया दा... अल्लाह बिस्मिल्लाह तेरी जुगनी...


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