संबंध = विश्वास

वैवाहिक संबंध कितना प्रियतर होना चाहिए? इसकी अहमियत समझने वाला इंसान इसपर विचार भी नहीं करता। वो उसे उतनी अहमियत देता ही है। वो अपने आप होता है, कोई ज़ोर जबरदस्ती नहीं। मैं इसे बेहतर ढ़ंग से महसूस करता हूं। आक्रामक ढंग से कह सकता हूं, कि इस मामले में बहुत ज्यादा सलाह की जरूरत महूसस नहीं करता। नजदीक रहने वाले लोगों से संबंध का जुड़ना किसी से प्रतिकार कैसे हो सकता है? कोई प्रेम से जुड़ना चाहता है। एक नई पीढ़ी के लिए अपने आप को समर्पित करना चाहता है, अपना सब कुछ हथेलियों में लेकर सामने आ जाता है, एक नया रक्त संबंध आगे जाकर बन जाए, इसमें मिश्रण का प्रस्ताव लेकर आ जाता है, संबंध विवाह का है लेकर आ जाता है, तो इसे स्वीकार क्यों ना कर लिया जाए, जब आत्मा स्वीकार करने में अचरज नहीं कर रही। हैरत नहीं हो रही। कोई परिस्थिति खिलाफत नहीं कर रही। सब मनोयोग से परिणति होने लगी है। फिर क्यों इसको इतराकर देखता रहूं? एक नए संबंध के लिए औपचारिक संबंधों की राय लेता फिरूं, जबकि वे सभी ठीक नहीं हैं। एक अजीब सा अंधविश्वास पैदा हो रहा है। जबकि, वहीं दूसरी ओर एक गुट भ्रम पैदा करने में लगा है। मुझे कोई ज़मानत नहीं चाहिए, चाहिए तो वह एक हमराय और बस सब समर्पण।

बहुत ज्यादा शोर नहीं होना चाहिए। वैवाहिक संबंध शांति में होना चाहिए। मनोयोग से पूरे। वही होता रहा है। आपकी कराह में, यहां तक कि आपकी आह में भी वो शामिल हो जाएंगे। एक मंजूरी- मानसिक। बस हां किया और हो गया। इतनी सी मानसिक छूट दे देना। कोई क्या छीन लेगा? कोई क्या ले लेगा, जब वही देने वाला है और देने के लिए तैयार है, वो भी सब कुछ। हमें वैवाहिक संबंध में भी शारिरिक कुछ नहीं देखना। आज मन ऊंचा उठ चुका है, ये संबंध केवल शारीरिक तो है ही नहीं। मैंने उसकी कभी तलाश नहीं की। केवल शारीरिक संबंध मुझे कभी नहीं चाहिए था। आज कुछ ज्यादा बड़ा, ऊंचा संबंध मुझे मिल रहा है। ये एहसास किसी तीसरे को नहीं होगा। मुझे ये साफ पता है। मैं चेहरों पर यकीन नहीं कर सकता। कौन है शुभचिंतक? कहीं भेड़िया कौन छिपा बैठा है? ये मुझे नहीं जानना। भेड़िया सलाहकार भी हो सकता है, जिसकी राय मुझे भटका सकती है। संबंध खराब कर सकती है। आरोप लगाना बेहद आसान होता है। वो बेहद आसान है। अच्छा है, उसके लायक तो हो रहे हो। कोई क्या नगीना मुझे दे देता, सिवाय मुझे ले लेने के? यहां प्रेम से किसी को अपनाने की देर है। यहां भटकाव की गुंजाइश केवल अनुचित लोगों की बात सुनने भर से पैदा हो चुकी है। अनुचित क्या है, ये आज मैं तय कर सकता हूं। एक बार फिर से कुछ अनसुना करने की जरूरत है। क्या बनना है, क्या होना है, क्यों हो जाना है, इसके लिए बस एक राय सुनो, बाकी सब मत सुनो। जब रंगना है, तो रंग जाओ। प्रेम के मौके पर ईर्ष्या के बीच वाले रिश्तों को अहमियत मत दो। प्रियतम हो जाओ। कड़वाहटों और इसे पैदा करने वालों से दूर हो जाओ। उन्हें नहीं होना चाहिए। 


No comments:

Post a Comment