काहे लगन दोआब पर लग आई
दोबारा भए ठिठके यौवन पर लौटाई
इन दिनकर प्रतीतियों में ललचाए
दिया बाती जलाए, चौखट पर आए
डूबन को कौन रे, हम बीतत रहे
घट रौनक जिगर लगाए भर आए
धन रहे कहां, कान तोड़ी राग लगाए
टूटे घट से बिखरे, टुकड़े जुटाए
दोबारा बैरी भए, रण दूर तक छाए
भीम रहे कौन, कौन बांके बिहारी
तम उड़े, मृदा उड़े खेले लिपटाए
तुम पावन भए हम नित्य सुनाए
बात बरन समझे कौन महाराज पाए
बैरागी से माया भागे, हम ठौर आए
दरबारी पूछे, रुकत ना जाने कहां ठौराए
दरख देखे, मेघ घने, हम मोर से बौराए
टोकत कौन बगीचे में तोतई भए
युगल भए, जुगत में बिजुरी बजाए
सदा रंग भरे, पिपासे प्यार लुटाए
आवत ही बात करें कौन, सब सुनाए
नार जिगरे कालिंदी नगरे ताल भाए
भुवन बांटत बंटे फिरे, जिगरा भरे नाए
दग्ध नयन चहके, बहके बहके फिर आए
लब्ध भयो कण्ठ, मन चहके सहस्त्रार्ध उठाए....
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