इमारत ढहने तो नहीं देंगे...

तुम हिकारत से देखते हो जब नाराज़ होते हो
हम फिर भी नहीं छोड़ते भरोसा जज्बातों पर

आते सिर्फ वही हैं काम दोराहों पर
जिनके अंदर हो खालिश यकीन 
खाली लफ्ज़ों से वो ठहरता नहीं
फिसलता है बहता रहता सतह पर

ये इतना बारीक तो होगा 
जो आंखें बंद कर भी समझ आए
तुम भर जाओ तो कह दो
हम भी मौके पर ढह जाएं

हम अपनी इमारत का कड़ापन 
जज्बे हिरासत रखना चाहते हैं
बुनियाद इतनी कमजोर तो नहीं है
जो बस गुरूर के फूंकने से टूट जाए

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