अक्स बड़ा बेरहम है
वो जैसा है वैसा ही दिखता है
चुपड़ा तत्व यहां नहीं टिकता है
वो बड़ा कर्कश हो या मधुर
उसका आकाश के नीचे ही
आशियां होता है
अक्सर ऊंच-नीच में
वो ही टूटता है, बिखरता है...
कहीं ना कहीं विवशता तो होती ही है. सीमाओं के सामने इंसान विवश ही है. उसके आगे उसके हाथ में परिणाम नहीं होते. योजनाओं की एक सीमा है. विचारों को कल्पना की उड़ान देते समय हमें धरातल पर भी देखना होता है. संभावनाओं के साथ उन्हें तोलना होता है. फिर भी एक बिंदु पर आपको उनके सामने क्षीण होना ही होता है.
ये अनुभव किसी बिखराव की तरह नहीं होता. ये बस आपके सीमित होने का आभास ही होता है. जिससे आपको विस्तार के संकल्प लेने में देरी ना हो. ये आपको थोड़ा गतिशील होने को भी प्रेरित करता है. विवशतावश इंसान सक्रिय भी रहता है. विशेषज्ञताओं से आगे बढ़ता है.
जरूरतें जीवन में खींचतान की तरह होती हैं. ये बाजार की तरह हैं वहां निकलते ही आप हर ओर से खींचे जा रहे होते हैं. हर तरफ आकर्षण इतना कि आप खुद भूल जाएं कि आप क्या हैं और बस कुछ और हो जाने को त्वरित लालायित हो जाएं. जरा उससे अलग होकर देखेंगे तो उनकी अनावश्यकता का आभास हो जाएगा. हम खुद आकर्षण हैं. हम इन हल्के आकर्षणों के प्रति कैसे खिंच सकते हैं. उनकी खींचतान में समय और साधनों को अनावश्यक व्यय ना करें तो बहुत कुछ आसान हो सकता है. मंजिल आसान हो सकती है.
क्या हमारे हाथ इतने मुश्किल में हैं कि वो रुक ही ना सकें. ऐसा नहीं होता. अनावश्यकता में हमें रुकना होगा. गैरजरूरी को गैरजरूरी मानना होगा. उसे सिद्ध करना होगा. हर मौके पर उसे ऐसे ही परिभाषित करना होगा. गैरजरूरी के ऊपर परत कोई भी चढ़ी हो. उसे यही कहना होगा कि ये जरूरी नहीं है. हालात एक सामान्य ढ़ंग से चलें ये ही अच्छा है. आपको बार-बार ये याद रखना होगा.
विवशता एक किस्म का खिंचाव भी पैदा करती है. जो आंतरिक होता है, ये प्रत्यास्थता की तरह है. इसे सिकुड़न भी कह सकते हैं. ये सारी परिस्थितियों के बीच आपको ऐसा सिकुड़ा हुआ सा इंसान बना देती है जो आपको कभी अपने भरोसे को मजबूत नहीं करने देती. आपको महसूस होगा कि ये आपको बढ़ने नहीं दे रही. कोई बात नहीं, आपको बस इतना ही करना है, इसके सामने दृढ़ता से खड़े होकर इसे चटका देना है. ये आपके आत्मबल से होगा. आपको बस तय कर लेना है कि नहीं मुझे इसमें फंसना नहीं है. ये मुझे कमजोर कर रही है. इसकी रुकावटों से मुझे रुकना नहीं है. इस ठहराव को घेर देना है. ये सब आप कैसे करेंगे?
इसका जवाब आपके पास है. आप जानते हैं कि आपकी मजबूती किसमें है. आप कहां कमजोर हैं. आपको इस विवशता को अपनी हेकड़ी से जवाब देना होगा. गौर से सोचेंगे तो पाएंगे ये एक मकड़ी के जाल की तरह है जो अपने आप खाली जगह को घेर लेती है. या समझेंगे कि ये किसी धुंध की तरह है, जिसमें हवा कम धुंआं और धूल ज्यादा होती है. ये चाहें मकड़ी का जाल हो या धुंध आपकी साफ-साफ देखने की क्षमता को प्रभावित करती है. आपको इसे अपने हाथों से ही हटाना होता है. धुंध कांच पर जम जाए तो गाड़ी चलाना खतरनाक होता है. अरे भाई दिखेगा ही नहीं तो आगे कैसे बढ़ेंगे!
मन का भी कुछ ऐसा ही हिसाब है. वक्त-बेवक्त आपके मन पर धुंध जम जाती है. मकड़ी अपना जाल बना लेती है. ये सब खुले आसमान के नीचे हो रहा है. इसके लिए आपको या तो हल्की सी पानी की शीतल फुहार मन पर बरसानी होगी. या झाड़ू उठाकर पूरा मकड़जाल साफ कर देना होगा. ये दोनों ही बेहद आसान काम हैं. दो मिनट के काम. लेकिन आप अपने आलस्य में या व्यस्तता में ये सब नहीं कर पाते. आप इन्हें अनिवार्य काम समझेंगे तो आप कर लेंगे. जब भी जरा सा भी समय हो तो पहली फुर्सत में आपको ये दो काम करने होंगे.
बस आपके समझने की देर है...
वो जैसा है वैसा ही दिखता है
चुपड़ा तत्व यहां नहीं टिकता है
वो बड़ा कर्कश हो या मधुर
उसका आकाश के नीचे ही
आशियां होता है
अक्सर ऊंच-नीच में
वो ही टूटता है, बिखरता है...
कहीं ना कहीं विवशता तो होती ही है. सीमाओं के सामने इंसान विवश ही है. उसके आगे उसके हाथ में परिणाम नहीं होते. योजनाओं की एक सीमा है. विचारों को कल्पना की उड़ान देते समय हमें धरातल पर भी देखना होता है. संभावनाओं के साथ उन्हें तोलना होता है. फिर भी एक बिंदु पर आपको उनके सामने क्षीण होना ही होता है.
ये अनुभव किसी बिखराव की तरह नहीं होता. ये बस आपके सीमित होने का आभास ही होता है. जिससे आपको विस्तार के संकल्प लेने में देरी ना हो. ये आपको थोड़ा गतिशील होने को भी प्रेरित करता है. विवशतावश इंसान सक्रिय भी रहता है. विशेषज्ञताओं से आगे बढ़ता है.
जरूरतें जीवन में खींचतान की तरह होती हैं. ये बाजार की तरह हैं वहां निकलते ही आप हर ओर से खींचे जा रहे होते हैं. हर तरफ आकर्षण इतना कि आप खुद भूल जाएं कि आप क्या हैं और बस कुछ और हो जाने को त्वरित लालायित हो जाएं. जरा उससे अलग होकर देखेंगे तो उनकी अनावश्यकता का आभास हो जाएगा. हम खुद आकर्षण हैं. हम इन हल्के आकर्षणों के प्रति कैसे खिंच सकते हैं. उनकी खींचतान में समय और साधनों को अनावश्यक व्यय ना करें तो बहुत कुछ आसान हो सकता है. मंजिल आसान हो सकती है.
क्या हमारे हाथ इतने मुश्किल में हैं कि वो रुक ही ना सकें. ऐसा नहीं होता. अनावश्यकता में हमें रुकना होगा. गैरजरूरी को गैरजरूरी मानना होगा. उसे सिद्ध करना होगा. हर मौके पर उसे ऐसे ही परिभाषित करना होगा. गैरजरूरी के ऊपर परत कोई भी चढ़ी हो. उसे यही कहना होगा कि ये जरूरी नहीं है. हालात एक सामान्य ढ़ंग से चलें ये ही अच्छा है. आपको बार-बार ये याद रखना होगा.
विवशता एक किस्म का खिंचाव भी पैदा करती है. जो आंतरिक होता है, ये प्रत्यास्थता की तरह है. इसे सिकुड़न भी कह सकते हैं. ये सारी परिस्थितियों के बीच आपको ऐसा सिकुड़ा हुआ सा इंसान बना देती है जो आपको कभी अपने भरोसे को मजबूत नहीं करने देती. आपको महसूस होगा कि ये आपको बढ़ने नहीं दे रही. कोई बात नहीं, आपको बस इतना ही करना है, इसके सामने दृढ़ता से खड़े होकर इसे चटका देना है. ये आपके आत्मबल से होगा. आपको बस तय कर लेना है कि नहीं मुझे इसमें फंसना नहीं है. ये मुझे कमजोर कर रही है. इसकी रुकावटों से मुझे रुकना नहीं है. इस ठहराव को घेर देना है. ये सब आप कैसे करेंगे?
इसका जवाब आपके पास है. आप जानते हैं कि आपकी मजबूती किसमें है. आप कहां कमजोर हैं. आपको इस विवशता को अपनी हेकड़ी से जवाब देना होगा. गौर से सोचेंगे तो पाएंगे ये एक मकड़ी के जाल की तरह है जो अपने आप खाली जगह को घेर लेती है. या समझेंगे कि ये किसी धुंध की तरह है, जिसमें हवा कम धुंआं और धूल ज्यादा होती है. ये चाहें मकड़ी का जाल हो या धुंध आपकी साफ-साफ देखने की क्षमता को प्रभावित करती है. आपको इसे अपने हाथों से ही हटाना होता है. धुंध कांच पर जम जाए तो गाड़ी चलाना खतरनाक होता है. अरे भाई दिखेगा ही नहीं तो आगे कैसे बढ़ेंगे!
मन का भी कुछ ऐसा ही हिसाब है. वक्त-बेवक्त आपके मन पर धुंध जम जाती है. मकड़ी अपना जाल बना लेती है. ये सब खुले आसमान के नीचे हो रहा है. इसके लिए आपको या तो हल्की सी पानी की शीतल फुहार मन पर बरसानी होगी. या झाड़ू उठाकर पूरा मकड़जाल साफ कर देना होगा. ये दोनों ही बेहद आसान काम हैं. दो मिनट के काम. लेकिन आप अपने आलस्य में या व्यस्तता में ये सब नहीं कर पाते. आप इन्हें अनिवार्य काम समझेंगे तो आप कर लेंगे. जब भी जरा सा भी समय हो तो पहली फुर्सत में आपको ये दो काम करने होंगे.
बस आपके समझने की देर है...
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