थककर चूर हो चुके क्रोध की आखिरी सांसें
पश्चाताप की पहली किलकारी होती हैं
उम्मीदों के एक नए सोपान पर
हक की बुनियादी उत्तराधिकारी होती हैं
हमराहों पर चिल्लाकर कितना घमंड कर लोगे
एकांत लम्हों में उन्हें यादों में कितना छू लोगे
बुज़दिली तुम्हारी हिम्मत की हार पर होती है
तिलमिलाहट पहाड़ सी ऊंची और पथरीली होती है
बेमन से उतरी ख्याली बात बड़ी भटकी हुई होती है
कविता कुछ और नहीं अक्सर उलझनें होती हैं
एहसास जब हो जाए उनके बस आने का
शिकवों सी वो शिकायतें अक्सर अधूरी होती हैं...
विशिष्ट
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