रौला कैसा है?
झोला भी नहीं टांगा
इन झोलों में हमें चलना है सीखा
ढ़ोलों की धुन पे है नाचा
कैसे बैरनिया भए सब, तब भी इश्क है आता
अस्तर चिपका भीतर किसका,
वही ढ़ीली सी जवानी वाला
फिर कैसा, ये रौला कैसा है?
अमर है ये तो कैसा,
धीरज भी बड़ा शातिर सा
जलवा सब्र का बड़ा रंगीला सा
घोर मचाया फिर कैसा है निढ़ाल
माथे पर दिखना है उसका,
उसका निशान कैसा है?
नाम है क्या सब पहचान है
उस पहचान का रौला कैसा है?
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