कुछ संजीदा सोचने के लिए आप कितनी रकम चुकाएंगे?
रहेंगे अपने कितने करीब या कितना लुटाएंगे
ये छड़ियों के सौदे हमें नहीं मिलते
हम कर नहीं पाते, जिया की बातें नहीं करते
मन चलाके भी नहीं चलाते, बाबरे से हो जाते
अदृश्य से अनुभव, जाने कितना कुछ सुनाते...
-----------------------------------------------------
ख्वाब नए, दिलकश सी इसकी खुस्की
परिंदों को उड़ाता, कलाकार सा मुस्कुराता
बेखबर नहीं है ये तो बड़ा तल्ख गौर सा
आना चाहेगा ये गैर पर, कोई ज़िद नहीं
कुछ दिन ऐसे ही, लड़खड़ाकर जाता रहेगा
अच्छे से ये एहसास लाता जाएगा...
-----------------------------------------------------
आइए लौटें, शहर में जो कोई भटके से मुसाफिरों के लिए
देखभाल की जरूरत क्या, इसे जाने दे
कितनी सीधी सी दुनिया, इसे मौज करने दो
इतनी सी पेशगी, उतना सी ताजपोशी
साथ में अपने हिस्से की धूप भी इसे मिलने दो...
-----------------------------------------------------
यहां कुछ अनकहा कहां है, काबूपन की जरूरत क्या
सारी हस्तियां यहां धूमिल, वहीं पर इसकी छोटी सी बूंदाबांदी
खरखराहट के साथ, आपकी दोस्ती और आपका मिजाज़
हमें मिल जाएगा, कुछ इस तरह का गुरुर
जिसपर हम बांट लेंगे, इसे आपस में
इतना सारा प्यार, मिलेगा हां हां मिलता जाएगा
बटोर ले...
-----------------------------------------------------
ये भी अपनी दुनिया, चल चल चल
रवानगी में बह बह बह
बंदेपन की यही तो बात है
ये मीठा मीठा, कोई हिलमिल सा घुलता रस नहीं
कुछ भी अधूरा सा नहीं, हां आने दो इसे
घुलने दो इसे...
No comments:
Post a Comment