"आप दरवाजा खोलते नहीं हैं"
जो चाहते हैं, उसे पाने का सोचते नहीं है
जितनी जिरह अपने इरादों से करते हैं
उतनी काम के वक्त अपनी आदत से नहीं करते
जो आना है उसे आने ही नहीं देते
माथे को गर्म करते रहते हैं
विचार जिधर ले जाना है, जाने नहीं देते
खिलेंगे कैसे ये फूल, शूल हटाते नहीं हैं
जो सच नहीं है, वो फल नहीं है
आप जो चाहते हैं, उसे आने नहीं देते हैं
आप दरवाजा खोलते नहीं हैं
आप ना अंदर आते हैं, ना बाहर जाते हैं
आप चिंघाड़ते नहीं हैं, आप भीतर घुस गए हैं
आप निकलिए, दरवाजा खोलिए
आप क्यों नहीं करते हैं
बुलंद दरवाजा क्यों नहीं खोलते हैं?
एक बार सुनते क्यों नहीं हैं
"याद पिया की आए, ये दुख सहा ना जाए"
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