तो वहां बस अंधकार रहने दो...


कहीं भी तनाव की गुंजाइश हो

तो वहीं उसको दफन कर दो

कहीं भी घमंड की तेज आवाज हो

तो वहीं उसको तीव्रता से दबा दो

वो उस भरोसे के सुर को नहीं सुन पाएंगे

वो वही बोलेंगे जो

खुद सुनकर नहीं सह पाएंगे

एक तीक्ष्ण एहसास के साथ

जो हमारा कदम है ठुकरा देने का

उसके बीच हम सब कैसे खड़े हों

हमें एक नई दिशा में उन सबको

इसी तरह छोड़ देना होगा

बस स बीच उनकी कर्कशता को

सिरे से अनसुना करना होगा

उनपर ना कोई प्रतिक्रिया हो

ना त्वरित संदेश हो

ना मुखर हों, बस शांत ही जबाव हो

निर्माण जब कुछ नहीं है

तो निर्वात ही अब पेश हो

सूख चुके मनों में उनके

ना जल दो ना स्नेह का लाभ

उन्हें अपनी गति का परिणाम मिलने दो

वो उतने तक सीमित हैं

उन्हें उन्हीं में जड़ रहने दो

वीरान जब हो चुके हैं वो

तो वहां बस अंधकार रहने दो...


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