खुश रहने के लिए वजहें तलाशने की जरूरत है. जब ये कम पड़े तो आसपास से मुंह मोड़ लें. जरा अंदर झांक लें. अंदर ना मिले तो कोई वजह जरूर तलाश लें. ये मिल जाएगी कहीं ना कहीं. एकांत बुरा नहीं होता. इसे संवारने की जरूरत होती है. एकांतवास में खुशी हमें खरीदने से नहीं मिलती. ये हमें खुद ही बनानी पड़ती है. मौके तलाशने होते हैं. कभी-कभी तो बस ऐसे ही बहाने ढूंढ़ने होते हैं. कुल मिलाकर खुश रहना होता है.
हम इतनी जल्दी में हैं कि ज़िंदगी में जरा सा भी ठहरना नहीं चाहते. सबकुछ इतनी तेजी से कर रहे हैं कि पूछिए ही मत. हाथ जल्दी जल्दी चल रहे हैं. फुर्ती एक अलग चीज है पर जल्दबाजी अलग. फुर्ती में हम एहसासों को तो नहीं भूल रहे होते. काम के साथ एक तसल्ली वाला एहसास और उसके बीच लगन के साथ एक उत्साह. जो लगातार सक्रिय रहने को प्रेरित करता रहे. पर जल्दबाजी में क्या रहता है? इसमें तो बस सब हिसाबी किताबी हो जाता है. इतने वक्त की इतनी कीमत और उतने वक्त की उतनी. इसी गणित में ज़िंदगी बीत जाए.
ज़िंदगी जल्दी बिताने को लेकर भी तो हम सभी इतने तल्लीन हैं. जरा भी नहीं ठहरते, कहीं पर भी नहीं. बस कट जाएं दिन और रात. जैसे तैसे. घड़ी बस चलती रहे यही दिखे. कहीं ना कहीं हमारे नए नज़रिये की गुंजाइश नहीं रहती यहां. बिताने पर ही जोर है. जब कुछ काटा जाएगा तो वो कष्टप्रद ही तो होगा. अलग हो जाने की कवायद में दर्द देने वाली बातें. कुछ लोगों की तो इतनी हिम्मत रहती है कि वे बस धकियाने में यकीन करते हैं. ढर्रे पर नहीं चले तो धकेल कर ही सही. कुछ ना कुछ धक्के के लिए चाहिए. चाहें वह किसी तरह हासिल हो.
हासिल करने मात्र में खुशी नहीं मिल सकती. खुशी हासिल कर लेना नहीं हैं. ये एक निर्माण है. वो कोई हासिल नहीं है. वह किसी पर आधारित नहीं है. वह कोई आरेख नहीं है. वह कोई चीज नहीं है. वह रवानगी में है. वह निरंतरता में है. वह सतत है. वह विचार है. ऐसा सतत विचार जो बस रोम रोम में समाहित रहे. खुशी कभी बीतने वाली भी नहीं है. कि वह आज है कल नहीं होगी. वह इतनी शक्तिशाली है कि वह हमेशा रह सकती है. हमारे साथ, हमारे भीतर. हम उसे तलाशें, जब खोती हुई मालूम हो.
खुशी कहीं ऊर्जा का स्त्रोत मात्र ही है. ये कम या ज्यादा जरूर लग सकती है. वह घट सकती है पर खत्म नहीं हो सकती. वह प्रभाव नहीं है. वह आधार है. यह निर्मित नहीं है यह निहित है...
हम इतनी जल्दी में हैं कि ज़िंदगी में जरा सा भी ठहरना नहीं चाहते. सबकुछ इतनी तेजी से कर रहे हैं कि पूछिए ही मत. हाथ जल्दी जल्दी चल रहे हैं. फुर्ती एक अलग चीज है पर जल्दबाजी अलग. फुर्ती में हम एहसासों को तो नहीं भूल रहे होते. काम के साथ एक तसल्ली वाला एहसास और उसके बीच लगन के साथ एक उत्साह. जो लगातार सक्रिय रहने को प्रेरित करता रहे. पर जल्दबाजी में क्या रहता है? इसमें तो बस सब हिसाबी किताबी हो जाता है. इतने वक्त की इतनी कीमत और उतने वक्त की उतनी. इसी गणित में ज़िंदगी बीत जाए.
ज़िंदगी जल्दी बिताने को लेकर भी तो हम सभी इतने तल्लीन हैं. जरा भी नहीं ठहरते, कहीं पर भी नहीं. बस कट जाएं दिन और रात. जैसे तैसे. घड़ी बस चलती रहे यही दिखे. कहीं ना कहीं हमारे नए नज़रिये की गुंजाइश नहीं रहती यहां. बिताने पर ही जोर है. जब कुछ काटा जाएगा तो वो कष्टप्रद ही तो होगा. अलग हो जाने की कवायद में दर्द देने वाली बातें. कुछ लोगों की तो इतनी हिम्मत रहती है कि वे बस धकियाने में यकीन करते हैं. ढर्रे पर नहीं चले तो धकेल कर ही सही. कुछ ना कुछ धक्के के लिए चाहिए. चाहें वह किसी तरह हासिल हो.
हासिल करने मात्र में खुशी नहीं मिल सकती. खुशी हासिल कर लेना नहीं हैं. ये एक निर्माण है. वो कोई हासिल नहीं है. वह किसी पर आधारित नहीं है. वह कोई आरेख नहीं है. वह कोई चीज नहीं है. वह रवानगी में है. वह निरंतरता में है. वह सतत है. वह विचार है. ऐसा सतत विचार जो बस रोम रोम में समाहित रहे. खुशी कभी बीतने वाली भी नहीं है. कि वह आज है कल नहीं होगी. वह इतनी शक्तिशाली है कि वह हमेशा रह सकती है. हमारे साथ, हमारे भीतर. हम उसे तलाशें, जब खोती हुई मालूम हो.
खुशी कहीं ऊर्जा का स्त्रोत मात्र ही है. ये कम या ज्यादा जरूर लग सकती है. वह घट सकती है पर खत्म नहीं हो सकती. वह प्रभाव नहीं है. वह आधार है. यह निर्मित नहीं है यह निहित है...
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