कहीं ना कहीं ठहरने की जगह चाहिए होती है. जीवन में जैसे रहने के लिए थोड़ी सी जगह चाहिए वैसे ही हर बार ठहरकर इधर-उधर थोड़ी समझ पाने के लिए देखने की भी जगह जरूर चाहिए होती है. हम किसे अपना समझें या किसे नहीं. किसे अपनी जगह कहें, ये यात्रा के पड़ाव में बदली हुई सी लगती रहती है. क्योंकि ये बदलती ही रहती है. हमें ज्यादा देर नहीं करनी चाहिए. जैसे ही असहजता की स्थिति बने, जगह बदलती रहनी चाहिए. ये कभी कुछ सिखाएगी, तो कभी कुछ ना कुछ देकर जाएगी. भीड़ से दूर बनती गुंजाइश में जहां मिले, वहां जगह घेर लेनी चाहिए. हर जगह की खूबियों में दिलचस्पी होनी चाहिए.
कभी-कभी बड़े उलझे हुए से विचार मन को उलझा देते हैं. प्राथमिकताओं को तय करने के लिए जब हम सूचीबद्ध हो रहे होते हैं, तो ये जरूर अपनी अड़चने पैदा कर रहे होते हैं. हमें गिनी चुनी व्यवस्थाओं में से एक जगह की व्यवस्था भी करनी होती है. उस जगह की विशेषताओं को अपनाना होता है. समीक्षा करेंगे तो हर तरह की विशेषताएं सामने आएंगी. जगह तो दरअसल सिर्फ जगह है, हम अपनी जगह घेरते भी हैं और अपनी जगह बनाते भी हैं. हमारे होने भर से जगह की बनावट बदलती रहती है. आज हमारा जगह को लेकर जो नजरिया है वह भी बदल सकता है. जरूरी नहीं कि ये हमेशा एक जैसा रहे, ये हमारे अनुभवों के साथ बदल सकता है.
कई बार हम समझ नहीं पा रहे होते हैं कि एक जगह हमें कैसे सुलभता की ओर ले जा सकती है. तो कहीं हमें लग सकती है कि कैसे एक दुर्लभ जगह के हम हिस्सेदार बन जाते हैं. कभी-कभी हम ना चाहते हुए भी ऐसी जगह पहुंच रहे होते हैं जिसकी अहमियत हमें तुरंत समझ भले ना आए, लेकिन एक प्रतियोगिता में वह बहुत ही श्रेयस्कर होती है. जैसे हम खुद को हर वक्त बदलते रहने की चेष्टा नहीं कर सकते. हम अपने होने में ही खुश होते हैं. जैसे हैं वही बने रहने में सुलभ होते हैं वैसे ही इन जगहों के साथ भी है. ये कई बार अपनी बनावट में ही रहना चाहती हैं. हम इनके संकेतों और अपेक्षाओं के अनुरूप बस जरा सा ढ़लने का प्रयास क्यों ना करें.
एक जगह बोझिल कैसे हो सकती है, जब तक कि हमारा मन ही स्वीकार ना कर ले कि ये उपयुक्त जगह नहीं हो सकती. ये हमारे अनुरूप नहीं है. यहां हमारी मन पसंदगी जरूर बीच में आएगी. हम तय कर लेंगे कि हां ये ही हमारे लिए सही थी, तो दूसरी ओर दूसरी चीज की तरह हमारी नापसंदगी भी सामने आएगी.
हम कब तक किसी चीज की कद्र करते हैं, जब तक कि हम उससे किसी ना किसी मूल्य की प्राप्ति करते रहते हैं. हमेशा मूल्यवान चीजें ही आकर्षित करती हैं. अच्छा होगा कि हम इस लालच से हटकर भी चीजों की कद्र करना सीखें. हम खुद के साथ तो हैं ही. हमसे बढ़कर हमारा साथ कौन दे सकता है. ये नितांत एकांत जगह होगी, निर्जन हो जाएगी. आप निर्जन को रंगीन करना चाहते हैं. निर्जनता को निर्जनता ही रहने दें. आप रंगीन हो जाएं. रंगीन में अगर निर्जनता की जरूरत लगे तो मन को निर्जन कर दें, जगह को निर्जन करने का प्रयास ना करें. क्योंकि एक ही जगह की आवश्यकता कई लोगों को हो सकती है. एक ही जगह किसी के लिए निर्जन तो किसी के लिए रंगीन हो सकती है.
शर्त यही है कि हम अपने मन को ही सुरक्षित करके रखें. हर जगह पेंट करने की जरूरत नहीं है. हर जगह पर पर्दा डालना जरूरी नहीं है, जो दिख रहा है उसे छिपाने की क्या जरूरत? जो बोझिल है उसे बोझिल ही रहने दो. जो आनंददायक है उसमें आनंद लो.
गौर करके देखेंगे तो हमारा मन जबरदस्ती समस्याएं तलाश रहा होता है. हम सुलभता देना नहीं चाहते. हम समन्वय नहीं करना चाहते. सहकार्य नहीं चाहते. हम घुलना मिलना नहीं चाहते. कभी कोशिश करके तो देखिए पत्थर पर उंगली ही घिसकर देखिए. लकीर नहीं खिंच सकती तो क्या कोशिश तो करिए. सहजता और विषमता कोई भी परिस्थिति हो उनसे निपटने का प्रयास करें. जगह कोई भी हो वहां रहें, ठहरें और इसे सुलभ बनाएं, सहज बनाएं, ये हमारे हाथ में है. हम यहां हेकड़ी ना दिखाएं. इसे प्रेमपूर्वक पार करें. यात्रा का एक पड़ाव मात्र है, कुछ वक्त गुजारने के लिए यहां टिकना जरूरी है. ये स्थाई नहीं हो सकता. कभी नहीं, ये सिर्फ एक जगह ही तो है...
कभी-कभी बड़े उलझे हुए से विचार मन को उलझा देते हैं. प्राथमिकताओं को तय करने के लिए जब हम सूचीबद्ध हो रहे होते हैं, तो ये जरूर अपनी अड़चने पैदा कर रहे होते हैं. हमें गिनी चुनी व्यवस्थाओं में से एक जगह की व्यवस्था भी करनी होती है. उस जगह की विशेषताओं को अपनाना होता है. समीक्षा करेंगे तो हर तरह की विशेषताएं सामने आएंगी. जगह तो दरअसल सिर्फ जगह है, हम अपनी जगह घेरते भी हैं और अपनी जगह बनाते भी हैं. हमारे होने भर से जगह की बनावट बदलती रहती है. आज हमारा जगह को लेकर जो नजरिया है वह भी बदल सकता है. जरूरी नहीं कि ये हमेशा एक जैसा रहे, ये हमारे अनुभवों के साथ बदल सकता है.
कई बार हम समझ नहीं पा रहे होते हैं कि एक जगह हमें कैसे सुलभता की ओर ले जा सकती है. तो कहीं हमें लग सकती है कि कैसे एक दुर्लभ जगह के हम हिस्सेदार बन जाते हैं. कभी-कभी हम ना चाहते हुए भी ऐसी जगह पहुंच रहे होते हैं जिसकी अहमियत हमें तुरंत समझ भले ना आए, लेकिन एक प्रतियोगिता में वह बहुत ही श्रेयस्कर होती है. जैसे हम खुद को हर वक्त बदलते रहने की चेष्टा नहीं कर सकते. हम अपने होने में ही खुश होते हैं. जैसे हैं वही बने रहने में सुलभ होते हैं वैसे ही इन जगहों के साथ भी है. ये कई बार अपनी बनावट में ही रहना चाहती हैं. हम इनके संकेतों और अपेक्षाओं के अनुरूप बस जरा सा ढ़लने का प्रयास क्यों ना करें.
एक जगह बोझिल कैसे हो सकती है, जब तक कि हमारा मन ही स्वीकार ना कर ले कि ये उपयुक्त जगह नहीं हो सकती. ये हमारे अनुरूप नहीं है. यहां हमारी मन पसंदगी जरूर बीच में आएगी. हम तय कर लेंगे कि हां ये ही हमारे लिए सही थी, तो दूसरी ओर दूसरी चीज की तरह हमारी नापसंदगी भी सामने आएगी.
हम कब तक किसी चीज की कद्र करते हैं, जब तक कि हम उससे किसी ना किसी मूल्य की प्राप्ति करते रहते हैं. हमेशा मूल्यवान चीजें ही आकर्षित करती हैं. अच्छा होगा कि हम इस लालच से हटकर भी चीजों की कद्र करना सीखें. हम खुद के साथ तो हैं ही. हमसे बढ़कर हमारा साथ कौन दे सकता है. ये नितांत एकांत जगह होगी, निर्जन हो जाएगी. आप निर्जन को रंगीन करना चाहते हैं. निर्जनता को निर्जनता ही रहने दें. आप रंगीन हो जाएं. रंगीन में अगर निर्जनता की जरूरत लगे तो मन को निर्जन कर दें, जगह को निर्जन करने का प्रयास ना करें. क्योंकि एक ही जगह की आवश्यकता कई लोगों को हो सकती है. एक ही जगह किसी के लिए निर्जन तो किसी के लिए रंगीन हो सकती है.
शर्त यही है कि हम अपने मन को ही सुरक्षित करके रखें. हर जगह पेंट करने की जरूरत नहीं है. हर जगह पर पर्दा डालना जरूरी नहीं है, जो दिख रहा है उसे छिपाने की क्या जरूरत? जो बोझिल है उसे बोझिल ही रहने दो. जो आनंददायक है उसमें आनंद लो.
गौर करके देखेंगे तो हमारा मन जबरदस्ती समस्याएं तलाश रहा होता है. हम सुलभता देना नहीं चाहते. हम समन्वय नहीं करना चाहते. सहकार्य नहीं चाहते. हम घुलना मिलना नहीं चाहते. कभी कोशिश करके तो देखिए पत्थर पर उंगली ही घिसकर देखिए. लकीर नहीं खिंच सकती तो क्या कोशिश तो करिए. सहजता और विषमता कोई भी परिस्थिति हो उनसे निपटने का प्रयास करें. जगह कोई भी हो वहां रहें, ठहरें और इसे सुलभ बनाएं, सहज बनाएं, ये हमारे हाथ में है. हम यहां हेकड़ी ना दिखाएं. इसे प्रेमपूर्वक पार करें. यात्रा का एक पड़ाव मात्र है, कुछ वक्त गुजारने के लिए यहां टिकना जरूरी है. ये स्थाई नहीं हो सकता. कभी नहीं, ये सिर्फ एक जगह ही तो है...
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